वापस लौटना चाहती हूँ.....
वापस लौटना चाहती हूँ.....
बचपन में स्कूल पर गुस्सा आता था
यूँही सुबक-सुबक कर रोना आता था
पर आज वो पल एक नजारा लगता है
हर कमीना दोस्त बड़ा प्यारा लगता है
माँ की वो गोद याद बहुत आती है
जो रोज सवेरे स्कूल छोड़ आती थी
पापा के वो कन्धे याद बहुत आते है
जो हाफ टाइम में ही घर ले आते थे
बहुत याद आता है घर का वो खाना
जो माँ जबरदस्ती खिला दिया करती थी
बहुत याद आती है गांव की वो गलियां
जहाँ हम दिन भर खेला करते थे
पर कैसे शिकायत करू मैं
इस दौड़ती हुई ज़िन्दगी की,
जो कभी ख़्वाहिश थी मेरे इस नन्हें से दिल की
पर आज ये दिल कहता है
कुछ पल दूर चली जाऊं इस शहर से,
इसकी भीड़ भरी गलियों से,
एक्टिवा,कॉलेज,कोचिंग,पिज्जा,बर्गर
और होस्टल में उलझी
इस ज़िन्दगी से बहुत दूर
गाँव की उन धूल उड़ती गलियों में,
हरे-भरे खेतों में,
जहाँ सुकून है,
वक्त है,
अपनापन है़.....
