वाह री ! दुनिया
वाह री ! दुनिया
चली दुख दाहने लेकिन
रही सुख दाह री ! दुनिया
मुझे ही क्या, किसी को भी
नहीं परवाह री ! दुनिया
न साधन पास में जब हों,
मुसीबत हों पहाड़ों-सी ।
जुटाकर एकता के भाव,
भावुकता पहाड़ों-सी ।
निकलती खोजने सुख-शांति
मिलकर; वाह री ! दुनिया
न साधन की कमी जब हो,
कमी तिल की न ताड़ों की ।
बनाती ताड़ ही तिल के,
धुनें रण के नगाड़ों की ।
उलझती है सुखों में ही,
परस्पर ; वाह री ! दुनिया
चली दुख दाहने लेकिन,
रही सुख दाह री ! दुनिया
वाह री ! दुनिया