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Meena Mallavarapu

Abstract Inspirational

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Meena Mallavarapu

Abstract Inspirational

ऊंचाई

ऊंचाई

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ऊंचाइयों ने दी आवाज़, गहराइयों ने भी

गम्भीर्य दोनों में, गरिमा भी दोनों में-

मैं कहां थी पीछे हटने वालों में

चली इस बिंदु से उस बिंदु तक नापने


गहराई सागर की,ऊंचाई पर्वत शिखर की

विशाल, अखंड इस ब्रह्मांड को करने कैद

अपनी इस छोटी सी मुट्ठी में-

कैसे समाएंगा अनंत,असीम-

इतना कुछ,अपनी इस मुट्ठी में


बोला हंस कर मन किसे चली है करने कैद

वह न होगा कैद तेरी मुट्ठी में यह सच तो मान ले

समाना होगा

तुझको उस में इतना तू जान ले

उल्टी गंगा बहाने वाली बात तो है मगर

हम झांक तो लें ज़रा अपने अंदर


है कुछ ऐसा अनूठा जीवन का सफ़र

मुश्किल को करना आसां है मुमकिन मान ले

तेरा अंतर्मन भी उसी ब्रहमांड का पर्याय जान ले

दर दर नहीं भटकना, दूर नहीं तुझे है जाना


सृष्टि ने बनाया हमें सक्षम, विचक्षण शक्ति दी

और कहा- ले संभाल अपना यह तोहफ़ा

है बेशकीमती, कैसे इसे संभालेगा तेरी मर्ज़ी

अपने अंतर्मन में झांक गर तुझे ब्रह्मांड है पाना।


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