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Abhishek Singh

Others

4.9  

Abhishek Singh

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उत्सव!

उत्सव!

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गणेश चतुर्थी का था वो उत्सव,

जो याद रहेगा जीवन सदा।

उनकी कृपा से जिया था।

उस पल का एक लम्हा हसीन।

प्रति दिन प्रातः पूजन में,

मुलाक़ात का था अनुबंध।

कभी इंतज़ार उनको मेरा होता।

कभी प्रतीक्षा उनकी पंक्ति में मैं

करता।


जब तक नज़र से नज़र न मिलती ,

वंदन हमारा सफल न होता।

उनके एक झलक से मानो,

चेहरे पर नूर था आ जाता।

मेरे दीदार के बिना,

दिन उनका भी नहीं कट पाता।

न जाने कब दिन वो आया,

बप्पा मोर्या रे का नारा लगाया।


बिन मौसोम की होली खेली,

ख़ूब जम के रंग उड़ाया।

साथ में मिल के विदाई कराई,

यमुना में ख़ूब डुबकी भी लगायी।

सात दिनों तक उठ न पाया।

साथ डेंगू का उपहार जो लाया।

गणेश चतुर्थी का उत्सव आया।

गणेश चतुर्थी का उत्सव आया।


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