उसकी पसंद और मेरी पसंद
उसकी पसंद और मेरी पसंद


उसे आईलाइनर पसंद था,
मुझे काजल।
वो फ्रेंच टोस्ट और कॉफी पे मरती थी,
और मैं अदरक की चाय पे।
उसे नाइट क्लब पसंद थे,
मुझे रात की शांत सड़कें।
शांत लोग मरे हुए लगते थे उसे,
मुझे शांत रहकर उसे सुनना पसंद था।
लेखक बोरिंग लगते थे उसे,
पर मुझे मिनटों देखा करती जब मैं लिखता।
वो न्यूयॉर्क के टाइम्स स्कवायर,
इस्तांबुल के ग्रैंड बाजार में शॉपिंग के सपने देखती थी,
मैं असम के चाय के बागानों में खोना चाहता था।
मसूरी के लाल टिब्बे में बैठक
र सूरज डूबना देखना चाहता था।
उसकी बातों में महँगे शहर थे,
और मेरा तो पूरा शहर ही वो।
न मैंने उसे बदलना चाहा न उसने मुझे।
एक अरसा हुआ दोनों को रिश्ते से आगे बढ़े।
कुछ दिन पहले उसकी एक सहेली से पता चला,
वो अब शांत रहने लगी है,
लिखने लगी है, मसूरी भी घूम आई,
लाल टिब्बे पर अँधेरे तक बैठी रही।
आधी रात को अचानक से उनका मन
अब चाय पीने को करता है।
और मैं...
मैं भी अब अक्सर कॉफी पी लेता हूँ
किसी महँगी जगह बैठकर।