उसकी हथेली
उसकी हथेली
उसकी हथेली नहीं थी हथेली
वह समुंदर की कोख से
उपजे दो कमल थे,
वहाँ रेखाएं नहीं
लहरें थीं सुर्ख और अटल
गहराइयों तक पसरी
अंगुलियाँ कहाँ थीं अंगुलियाँ
अंगूठा भी तो नहीं था
अंगूठा पंखुडी़ जैसे
उगते सूर्य की रक्तिम आभा को
लजा देने वाली लालिमा का
संसार था वहाँ,
मैं क्या बताऊँ ????
उसकी हथेली और
उस पर रखी मेरी हथेली
अपनी दिशा खोजती
एक नाव थी.....