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उस रेत सी मेरी कहानी है..

उस रेत सी मेरी कहानी है..

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जब रेत तैरती पानी पर,

पानी का कहाँ कुछ जाता है,

कुछ समय रेतीला रहता है,

फिर नव-नीर हो जाता है।


ऐसे में रेत जो भीगती है,

कुछ कण तो बह जाते हैं,

एक नयी लहर के साथ वह कण,

कुछ और भीगते जाते हैं ।


उस रेत सी मेरी कहानी है,

जो किरणों की आस लगाए,

लहरों के परिपूर्ण स्पर्श से,

जल में ही जलती रहती है।


कोई लहर कभी आये तो फिर,

वापिस जाने का नाम न ले

उस लहर में रहकर रेत भी फिर,

धरती पर स्थापित हो जाए ।


एक किरण गिरे इस धरती पर,

कहीं नमी दूर वह ले जाए,

फिर लगे चमकने मोती सी,

एक नव-जीवन सा पा जाये।


पर पानी तो आखिर पानी है,

आये तो वापिस जाता है,

गहरी यादों सा रहता है,

हर बार नया कण भिगोता है।


बहती रहती है रेत वहीं,

जल से थल में जम जाती है,

कभी सूर्य का अक्स ढूंढती है,

कभी नीर में नीर बहाती है !


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