उपहास
उपहास
उपहास सुन जलता नहीं
न मरता बदले की आग में
उपहास को उपहार मान
मन ही मन होता खुश
उपहास में ही दिख जाता
उपहासी का असली रूप
हां, उपहास सुन जलता नहीं
न ही होता हैरान - परेशान
उपहास को कर नजरअंदाज
खुद का जीता जिंदगी
कहने वाले कुछ भी कहते
खुद के अंदर झांकते नहीं
शायद, दूसरे का उड़ा उपहास
खुद का गम खुद करते कम ।