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Sanjay Aswal

Romance

4.7  

Sanjay Aswal

Romance

उन दिनों

उन दिनों

1 min
236


ये उन दिनों की बात है

जब उम्मीदों में उनके हम दुबके होते थे 

और वो पास से जब गुजरते

तो अरमान हमारे भी जिंदा होते थे।

दिल के अहसास बैचैन 

आरजू हमारी मचल जाती थी 

जब निगाहें उनकी 

हमारी निगाहों से टकराती थी।

सरकता था जब कांधे से दुपट्टा उनका 

तबियत हमारी और जंवा हो जाती थी 

और वो बिन कहे बहुत कुछ कह जाती हमें

जब जुल्फें अपनी खिड़की पर संवारती थी।

हम बहुत खुश रहा करते थे उन दिनों

जब गलियों में उनके यूं आना जाना था 

इश्क बेशक हमारा अधूरा अधपका था

मगर दिल का उनसे वर्षों का याराना था।

वो जब खिलखिला के हंसती थी

इस मुरझाए जीवन में रौनक करती थी 

दे जाती थी दवा अपनी एक मुस्कान से हमें

जब इस टूटे दिल की आह निकलती थी।

अब वो नहीं तो तन्हा बिल्कुल अकेला हूं 

यादों के साए में मैं उसके जीता हूं

सुनसान उन गलियों में जब मैं खुद को पाता हूं 

यादों में उनके मैं बहुत तड़प जाता हूं।

उदासी इस कदर घेर लेती है हमें

 बेबस समुंदर में धकेल देती है हमें

 उनके ना होने का गम रुलाता है

 हसरतों को जिंदा ही दफ़न कर जाता है।






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