उम्र का पड़ाव
उम्र का पड़ाव
देखा होगा तुमने कभी ना कभी,
हर घर का किस्सा ये सच्चा है।
उसी घर में देखा है मैंने भी कि,
साथ रहते एक बूढ़ा और बच्चा है।
बच्चे का जन्म हुआ तो आयीं
सब पर एक नई जिम्मेदारी है।
वो बूढ़ा भी बैठा है वहीं पर,
जिसने देखी दुनियादारी है।
देखो अब कैसे दिन बीत रहा है,
और धीरे धीरे किस्सा बदल रहा है।
बच्चे के दूध के दाँत निकल रहे हैं,
तो बुढ़ापे में वही दाँत झड़ रहे हैं।
वो बच्चा है जो माँ बाप के सहारे,
घर के अंदर अंदर चल रहा है।
और एक बूढ़ा लाठी के सहारे
घर से बाहर निकल रहा है।
एक चल चलकर गिर कर रहा है,
एक गिर गिर कर चल रहा है।
एक की और सब खींचे आ रहे हैं,
और दूसरे से सब दूर जा रहे हैं।
बच्चे की खिलौने से सबर नहीं हैं,
और किसी को बूढ़े की खबर नहीं है।
उम्र का ही खेल हैं ये सब,
कहीं बच्चे तो कहीं बूढ़े का साया है।
ना जाने क्या सोचकर ख़ुदा ने,
उम्र का पड़ाव बनाया हैं।