उल्फत
उल्फत
छू लेती हो बार-बार मेरी रूह को
मुझको कब जान पाओगी तुम
मेरी हर सांस का इंतजार हो तुम
मेरी हमसफ़र कब बन जाओगी तुम।
यादों में रहती हो हर दम
कब मुझे यादों में लाओगी तुम
मेरा हाथ हो तुम्हारा साथ हो
कब अपने एहसास में मुझे लाओगी तुम
तुम्हारे सिंदूर पर बस मेरा ही नाम हो
कब इससे रूबरू हो जाओगी तुम
बन गई हो मेरी सब कुछ
कब मुझे पलकों पर बैठाओगी तुम
रात में उजली किरण हो ,
मेरी आँखों का नूर हो।
राहों का अंजाम कब बन पाओगी तुम ।
फूल ना मुरझा जाए कहीं
कब जुल्फें सजाओगी तुम
नज़्म बनकर रोम रोम में आ गई हो
जीवन का मेरे सार बन गई हो तुम
तुझे देखते ही दिल धड़कता है मेरा
आंखों में जीवन उतर आता है मेरा
उठता तूफान थम सा जाता है
हमसफ़र होने का एहसास कराता है
एक इशारा ही काफी है तुम्हारा
लहरों संग बहने को
तुम्हारी उल्फत को समझने को।
दिल में शहनाई बजाने को।।