त्यौहार
त्यौहार
कभी होकर रौशन सवेरों से ख़ुद मुख्तार नज़र आते हो
कर तकाज़ा तूफ़ाँ से जाने का शहरयार नज़र आते हो
चले जो हौसले लेके तो साहिब ए किरदार नजर आते हो
थाम लिया बढ़के गिरते हुए को ग़मख्वार नजर आते हो
बाँटकर मुस्कराहटों की खैरात दिलदार नजर आते हो
बता ये अदा क्या है क्यूँ इतना शहवार नज़र आते हो
हाल पूछ कर हौले से फूलों की बहार नज़र आते हो
दुखी दिलों की बेकरारी का तुम करार नज़र आते हो
कभी होली के इन्द्रधनुषी रंगों में गुलनार नज़र आते हो
आखिर बात है क्या क्यूँ इतना गुलज़ार नज़र आते हो
हर लम्हा हर पल तुम मुझे खुशरंग त्यौहार नजर आते हो
दशहरा दिवाली ईद कभी रमजान का इफ्तार नज़र आते हो
आती है जब अज़ान की आवाज़ मंदिरों की बजती हैं घंटियाँ
होके तब हर रूप से जुदा सिर्फ़ इबादतगुजा़र नजर आते हो।