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तू गर हो करीब

तू गर हो करीब

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साँसे रुक सी जाती तू करीब होने से

जुदाई का गम सहा भी नहीं जाता

ऐसे मरूँ या वैसे ही फ़ना हो जाऊँ

तू बता, मैं कुछ समझ न पाता।


सब्र बेसब्री की शिकार हर दफा क्यों

ये कैसा इम्तिहां ये दिल ! बता

हर तैयारी बेकार हो जाती अक्सर

यूँ खामोश रहा भी नहीं जाता।


तमन्नाओं को निचोड़ सोचता

सोच से परे है तू मगर

धड़कनों को यक़ीन न होता

क्यों रुक सी जाती अक्सर।


कभी थम सी जाती साँसें तन्हा

कभी बेकाबू हो जाती हैं ये

कभी मन ही मन मुस्काये,

कभी यूँ ही उदास हो जाये।।


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