तू डुबो डुबोकर खाएगा
तू डुबो डुबोकर खाएगा
आज ही लगा के बीज फल थोड़े ही पाएगा
समय की साख पर अभी पत्ते सूखे हैं ना डर
बाहर आने पर तो पूरा गुलिस्तां खिलखिलाएगा
कर्तव्य पथ पर सत्य कर्मों की गठरी लेता चला चल
देखना वक्त भी तेरी शख्सियत पर सर झुकाएगा
परिश्रम की कच्छी से कामयाबी की जलेबी को
कोशिशों की चासनी में
एक दिन
"तू डुबो डुबोकर खाएगा"