तुमने लहू से सिंचा मुझको
तुमने लहू से सिंचा मुझको




तुमने लहू से सिंचा मुझको
तुमने जगत में लाया है।
तेरे निज कर्मों से मैंने
मानव जीवन पाया है।।
सिंच सिंच बचपन से मुझको
इतना अटल बनाया है।
अस्त्र शस्त्र भी सोचें
दाता कैसा कवच बनाया है।।
कौन ख़ुदा है कहां ख़ुदा है
तुझमें ख़ुदा समाया है।
मेरी ख़ुशी के ख़ातिर तुमने
खुद की खुशी दबाया है।।
पथ प्रदर्शक रहकर मेरे
विदूर नीति समझाया है।
तेरा ऋण न कभी चुके
न अब तक कोई चुकाया है।।
लिखने वाले सब लिखते हैं
तू अम्बर सा साया है।
लेकिन सच में तेरी गाथा
रब भी समझ न पाया है।।