तुम्हारी कसम
तुम्हारी कसम
लाखों सदमे ढेरों ग़म।
फिर भी नहीं हैं आंखें नम।।
इक मुद्दत से रोए नहीं,
क्या पत्थर के हो गए हम।।
यूं पलकों पे हैं आँसू,
जैसे फूलों पर शबनम।।
ख़्वाब में वो आ जाते हैं,
इतना तो रखते हैं भरम।।
हम उस बस्ती में हैं जहाँ,
धूप ज़्यादा साये कम।।
अब ज़ख्मों में ताब नहीं,
अब क्यों लाए हो मरहम।।
हम तो तुमको भूलें नहीं
तुम क्यों मुझे भूलें सनम।।
हर पल हरदम चाहता तुझको
तुमको ना भूलूंगा तुम्हारी कसम।।