तुम्हारे संग
तुम्हारे संग
संग तुम्हारे सारी दुनियां से
टकरा सकती हूं,
सुन मीत मेरे।
मखमली चादर कहां मिलती हर पथ,
कटिली झाड़ियों पे भी चल सकती
ये हौसला आता सिर्फ प्यार से तेरे।
मेरे दर्द में मुझे गले लगा,
पतझड़ में भी हर पल
बसंत सा अहसास कराया।
दोनों बाहों के बीच भर हरदम
मेरे मुरझाए चहरे को
गुलाब की तरह खिलाया।
मेरी हर खामोशी को,
खामोशी से सुन
परिवार के आगे भी मेरे
अस्तित्व होने कि पहचान करवाई।
पिया तेरी ये बात दिल की गलियों में ,
हर सांस में मेरे छोटे से उर में बरगद की
टहनियों सी फैल विशाल घर कर गई।
मै ये नहीं कहती तुमसे मेरी आपसी
टकरार कभी हुई नहीं !
लेकिन तुम्हें तो उस तकरार में भी
प्रेम का अठहास करता देता सुनाई।
तेरे प्रीत की चादर में इस तरह में रंगने लगी।
गमों के बिखरे इटों को, प्यार कि चाशनी में डूबा
उन ईंटों को जोड़ तुम्हें संवार खुद भी अब
तुम्हारे संग संवारने लगी।