तुम
तुम
मेरी रचनाओं में अनायास
तुम्हारा अक्स उतर आता है,
जैसे भोर की आहट के साथ क्षितिज पर
थिरक उठती हैं अरुण की लाल रश्मियां
जैसे बारिश के बीच ही अचानक
चमक जाती हैं बिजलियां ।
जैसे हवा के झोंके से दबी राख में
सुलग उठती है चिंगारियां।
जैसे प्रिय आगमन पर, मन में
बजने लगी है शहनाइयां।
जैसे उमस भरी शाम हो और तभी
चलने लगी हो पुरवाईयां।
दीपप्रिया मिश्रा