तुम मेरे वो तुम हो...
तुम मेरे वो तुम हो...
तुम मेरी कोई,
उम्मीद या तमन्ना नहीं हो,
हाँ .. तुम मेरी वो प्रेरणा हो..
जैसे जिंदा रहने के लिए साँस लेते हैं ना
उसी तरह..
तुम मेरी कोई,
बचकानी बात या जिद्द नहीं हो,
हाँ .. तुम मेरा वो आत्मविश्वास हो..
जिस से हर बुरे वक्त के जाल से
खुद को सुरक्षित बाहर निकाल सकूँ..
तुम मेरा कोई
आवारापन या लापरवाही नहीं हो,
हाँ ... तुम मेरी वो दहलीज हो,
जिसे दुनिया की हर बुरी बलाएँ
मेरे सामने मुझसे पहले तुम्हें पाएँ
एक लक्ष्मण रेखा की तरह..
तुम मेरा कोई
झूठ या कपट नहीं हो,
हाँ ... तुम मेरा वो सत्य हो,
जिसके सामने मेरे अतीत कोई अर्ध सत्य मेरा शीश झुका ना सकें...
तुम मेरी कोई
घुटन या इंतजार नहीं हों,
हाँ ... तुम मेरा वो अस्तित्व हो,
जो मुझसे जुदा होकर भी कभी रूसवा हो ना सकें...
तुम मेरा कोई
कपट या मतलब नहीं हों,
हाँ ... तुम वो अपनापन हो,
जो खुद को दर्द में रख भी मेरे मुस्कान झलक बनकर जीए ...
तुम मेरा वो तुम हो ...
जो तुम्हारे बिना मेरा सर्वस्व अधूरा हैं...