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आकिब जावेद

Drama

5.0  

आकिब जावेद

Drama

तुम लफ़्ज़ों से बेगाने रहे

तुम लफ़्ज़ों से बेगाने रहे

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तुम लफ़्ज़ों से बेगाने रहे

हम धड़कन से बेगाने रहे।


ग़र कभी हमें होश न रहा

अपने भी हमसे बेगाने रहे।


ज़िंदगी की डोर को बांधे

ज़िंदगी से हम बेगाने रहे।


मायूस ज़िंदगी की गली में

गुम ख़्यालों से बेगाने रहे।


तुम्हें पढ़ा ज़र्रा-ज़र्रा हर्फ़-हर्फ़

सब जान के तुम बेगाने रहे।


दिल के डोर को तुम मोड़ दो

हम अपने अक्स से बेगाने रहे।


तेरा साथ ग़र हो ज़माने में

हम भी ज़माने से बेगाने रहे।।


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