तुम को रिझा न पाया
तुम को रिझा न पाया
लिखे कितने ही गीत मगर तुम को रिझा न पाया,
जो तुम को द्रवित कर देती इतना कभी न कर पाया।
मन में जो भाव जगे, उनको ही लिख डाला,
लिखवाने वाला कोई और था मैं तो सिर्फ एक बहाना,
प्रयास करने की कोशिश तो बहुत की ,पर तुमको रिझा न पाया।
दिन- रात बीती मोह -माया में, जग में कुछ ना भाया,
नींद खुली तब समझ में आया, ये सब तेरी ही माया,
तब आ पड़ा तेरी शरण में,पर तुमको रिझा न पाया।
तुमने भी तो ऐ मेरे मालिक ,इतना तो दे डाला,
मन भ्रमित में पड़ा रहा, तुम ने रचाई ऐसी लीला,
अहंकार ने ऐसा लूटा ,पर तुम को रिझा न पाया।
धन्य- धन्य हो तुमको मालिक ,समय रहते जो चेता दिया,
जी, रहा था अंधकार में ,तम मिटा जो प्रकाश किया,
एस भूले भटके" नीरज" ने पर तुमको कभी रिझा न पाया।।