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Neeraj pal

Romance

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Neeraj pal

Romance

तुम को रिझा न पाया

तुम को रिझा न पाया

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लिखे कितने ही गीत मगर तुम को रिझा न पाया,

जो तुम को द्रवित कर देती इतना कभी न कर पाया।


मन में जो भाव जगे, उनको ही लिख डाला,

लिखवाने वाला कोई और था मैं तो सिर्फ एक बहाना,

प्रयास करने की कोशिश तो बहुत की ,पर तुमको रिझा न पाया।


दिन- रात बीती मोह -माया में, जग में कुछ ना भाया,

नींद खुली तब समझ में आया, ये सब तेरी ही माया,

तब आ पड़ा तेरी शरण में,पर तुमको रिझा न पाया।


तुमने भी तो ऐ मेरे मालिक ,इतना तो दे डाला,

मन भ्रमित में पड़ा रहा, तुम ने रचाई ऐसी लीला,

अहंकार ने ऐसा लूटा ,पर तुम को रिझा न पाया।


धन्य- धन्य हो तुमको मालिक ,समय रहते जो चेता दिया,

जी, रहा था अंधकार में ,तम मिटा जो प्रकाश किया,

एस भूले भटके" नीरज" ने पर तुमको कभी रिझा न पाया।।



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