तुम कौन हो
तुम कौन हो
तुम कौन हो,
जो सूखी गरम फिजाओं में
किसी ठण्डी हवाओं के झोंके सा
मुझे छूकर निकल जाती हो
तुम कौन हो ,
जो अंधेरी रातों में
पिघलती हुई चांदनी सी
मेरे चारों तरफ फैल जाती हो,
जो हर रोज मेरे खाली पलकों पे
एक नया सपना छोड़ जाती हो ,
तुम कौन हो,
जो मुझे मेरे होने का
एहसास दिला जाती हो ,
मेरे ज़िस्म को चीरती हुई
मेरे रूह तक को छू जाती हो
जो&
nbsp;शब्दों के सीमाओं से परे
खामोशी की जुबां कहती हो ,
जो हर रोज मेरे साथ,
एक नया रिश्ता जोड़ लेती हो
तुम कौन हो,
जो मेरी टूटती हुई सांसों को
अपनी सांसों से जोड़ लेती हो
मेरी बंद होती आँखों को
एक नए जीवन का दर्पण दिखा देती हो
तुम कौन हो,
जो मुझे वापस ज़िन्दगी की तरफ
खींच रही हो, या शायद
मेरे साथ ही
इस जहां से उस जहाँ तक
चल रही हो ,
तुम ......कौन हो,