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Bhavna Thaker

Romance

4  

Bhavna Thaker

Romance

तुम बिन सावन हमसफ़र

तुम बिन सावन हमसफ़र

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कहाँ भाती है कोई शै मुझे जहाँ तुम्हारी परछाई न हो,

कैसे काटूँ सावन भीतर बिरहन के हूक सी उठती है...

 

रिमझिम फुहार दिल पर तीर सी लगती है,

तेरे बिना साजन सावन की बहार सूनी लगती है...


करते थे नर्तन बाँहों में बाँहें डाले पहली बारिश के आमद पर,

आज छत का हर कोना बेज़ार लगता है...

 

घटाटोप घन की गड़गड़ाहट पर सकुचाती हूँ कहो कौन सी आगोश में छुपूँ जाकर,

तड़ीत के गरजने पर डर का जब बवंडर उठता है...


नहीं भाता सावन का झूला कौन झूलाए आँखों में आँखें डाले प्यार से धकेलते,

तुम्हारी हथेलियों की उष्मा झूले की डोर को रुलाती है...


देखो न खिली है जूही उस मंडवे की ड़ली-ड़ली,

ओख में भरकर कलियाँ जूही की कभी बरसातें थे तुम मेरे उपर...


आज भी मेरे बालों की लटें सराबोर महकती है,

ये सावन है या मौसम तुम्हारी यादों का एक टीश मुझे नखशिख जलाती है...


तन पर पड़ी फुहार तन की तपिश तो बुझाए अतृप्त मन की प्यास हमसफ़र

तुम बिन कौन बुझाए सावन की सूनी रातों में मन में अगन जब उठती है... 



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