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Dr Jogender Singh(jogi)

Tragedy

4.4  

Dr Jogender Singh(jogi)

Tragedy

ठूँठ

ठूँठ

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210


एक चवन्नी खोटी, निकली पुरानी पेंट की पिछली जेब से

चलन से बाज़ार की सालों पहले बाहर हुई,

आई सामने अनमोल धरोहर सी

क्या खूब लग रही है, चवन्नी पुरानी सी

याद दिलाती पिन्नी, बर्फ़ के गोले और कम्पट की  

साफ़ करके चमका दिया , 

सिक्कों की ऐल्बम में लगा दिया  

क़ीमत इसकी उतनी ज़्यादा हो जायेगी,

जितनी इसकी प्रजाति विलुप्त होती जायेगी

कुछ पुराने रिश्ते भी मैं ठण्डे बस्ते में डाल आया,

उन्हें पोंछ कर साफ़ करने का, अब समय आया

पर रिश्ते चवन्नी नहीं, कि रगड़ कर चमका लो,

बिन पानी के प्यार के, रूठ जाने वाले बिना मनुहार के

कुछ मानने को नहीं तैयार, कुछ छोड़ चुके संसार

रिश्तों का बाग़ीचा सूख गया,

रिश्ते का हर पेड़, प्यार का ठूँठ हो गया

इस जंगल में ठूँठों के,

अकेला बैठा देख रहा हूँ बेशक़ीमती सिक्के को  

काश मैं भी एक खोटा सिक्का होता,

किसी के लिए तो कीमती होता

तन्हाई की मार से, मैं तो सुधर जाऊँगा

पर क्या ? एक भी ठूँठ को मैं, फिर से हरा कर पाऊँगा ? 


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