ठहरा हुआ पतझड़
ठहरा हुआ पतझड़
ओढ़ के ये आसमाँ
चाँदनी में खो गयी
खुली पलकों में हाय,
रात सारी हो गयी...
फिर कहो ना बात कोई,
जो कभी कहते थे तुम
खुल के मुस्कुराए हुए
मुद्दतें सी हो गयी ...
फिर खिले ना फूल कोई
ना गुलों से बात हुई,
पतझड़ों में ठहरे जैसे
पूरी साल हो गयी....
फिर ना मुड़ के देखा कभी
ना ही मुलाक़ात हुई,
बन गए क्यूँ अजनबी
ऐसी क्या बात हो गयी....