Sahil Taank

Abstract

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Sahil Taank

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तो क्या मैं ग़लत करती हूँ

तो क्या मैं ग़लत करती हूँ

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मुट्ठी भर रेत से अपने ख्वाबों का आशियाँ सजाने का इरादा रखती हूँ

तो क्या मै गलत करती हूँ?

दरखतों की छावं में जिन्दगी नहीं कटा करती , मुझे मालूम है 

अपने मुकाम के लिए संघर्ष और मोहोब्बत खुद से कुछ ज्यादा करती हूँ 

तो क्या मै गलत करती हूँ?

रिश्तों की अहमियत है मुझे और अपनों के सहारे नहीं, साथ की आशा भी है 

खुद को झूठे दुनियावी दिखावे से दूर रखने का खुद से वादा करती हूँ

तो क्या मै गलत करती हूँ?

मुद्दतों बाद खुद को पहचाना है, हाँ मै औरत हूँ पर उससे पहले एक जिंदादिल इंसान

झूठी इज्जत, झूठी शान और झूठे लोगों की भीड़ से खुद को आज़ाद रखती हूँ

तो क्या मै गलत करती हूँ?

भ्रम में जीना नहीं मंजूर मुझे, मेरा आत्मविश्वाश मेरी पहचान है 

अपनी जिन्दगी, अपने उसूलों, अपने निर्णयों का निर्माण मै खुद करती हूँ

तो क्या मै गलत करती हूँ?

मान बड़ों का रख लूं गलत बात में भी, तो मुझसा आज्ञाकारी कोई नहीं 

खुद की सोच में जीकर, खुद की नजर में बुलंदियों से मिलती हूँ 

तो क्या मै गलत करती हूँ?

मुझे लाचार, मजबूर, बेबस समझने की गलती करते आए हो पर अब न करना

तुम्हारे सहारे से नहीं, खुद के हुनर से अपनी दुनिया खुद चलाने का ऐलान करती हूँ 

तो क्या मै गलत करती हूँ?

गर झुक कर जीना तुम मेरी तकदीर समझते हो तो खराबी तुम्हारी समझ में है मेरे संस्कारों में नहीं 

हाँ मै औरत हूँ अपने कर्मों के किस्सों से इतिहास लिखने का जूनून रखती हूँ

तो क्या मै गलत करती हूँ?

तो क्या मै गलत करती हूँ?


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