तनहा शायरी २१०३२३
तनहा शायरी २१०३२३
मुसलसल तुम्हे देखते रहे निगाह भर भर के
अपने अल्फ़ाज़ों को तख्ती पर बिठाने के लिए।
तेरी दरक़ार थी, मैं रोने से महरूम था
वो मेरा इश्क़ ही था जिसे दुनियां ने तोहमत कहा।
तू मेरे जैसा था, मुझसे मुख्तिलिफ नहीं था
कई भर गुफ्तगू में तूने मेरी मैंने तेरी चुटकी काटी है।
तेरी नज़ाकत ने मुझे जाने कितने तस्सवुर दिए
तेरी रूहानियत का जूनून मेरी कैफियत बयान करता है।