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SUMAN ARPAN

Abstract

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SUMAN ARPAN

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तमन्ना

तमन्ना

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ख़्वाब नहीं है मेरा मख़मली बिछौना का,

चाह नहीं मुझ को दौलत से भरी तिजोरी की

हसरत है बस इतनी मेरी ,

भूखे रहते हैं जो बच्चे,भरपेट रोटी की हो तमन्ना पूरी

बेबसी और ग़रीबी से अर्धनगन जिस्म है

उस पर हो साड़ी की तमन्ना पूरी

ख़्वाब.....


ख़्वाब नहीं है मेरा फूलों की सेज सजाऊ,

चाह नहीं है मुझको कि संगमरमर के महल बनाऊ

हसरत है बस इतनी सी बुढे लाचारो के सर पर छत हो

चाहे कुटिया छोटी सी

ख़्वाब....


तमन्ना 

है बस इतनी सी

बचा पाऊँ ै मैं लाज हर बेटी की

जिस पर हैवानो ने गिद्ध दृष्टि डाली है

चौराहे पर जो खड़ी बेबस है,

जिनकी बोलीं लगने वाली है

ख़्वाब.....


वादा है मेरा ख़ुद से,दुनिया के ठेकेदारों से,

सफ़ेदपोशी की आड़ में काले रंग सियारों से ,

भ्रष्टाचार और अमानवीय कृत्यों के बाज़ार से

ओढ़ कर बैठे हैं जो शराफ़त के नक़ाब

उतार दूँ नक़ाबों की लड़ी ,

तब नेकी और मानवता की जीत होगी

ख़्वाब...


एक दिन दूर होगा गम का अन्धेरा भारत से,

हर गाँव में रोटी,शिक्षा व तरक़्क़ी होगी 

हर तरफ़ अमन व चैन होगा

यही ख़्वाब है मेरा जागेगा भारत 

विश्व गुरु बनने की तमन्ना जल्दी पूरी होगी

 ख़्वाब नहीं मेरा मख़मली बिछौनों का।


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