Amit Kumar

Abstract

2.1  

Amit Kumar

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तमन्ना

तमन्ना

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यूँ ही किसी को अपना

बना लेते है मुस्कुराकर

कोई भी इस क़माल का


तलबगार हो जाता है

जो इस बात से

राब्ता नही रखते

यह दिल उनका भी

शुक्रगुज़ार हो जाता है

लाखों धड़कतें सीनों में


एक ज़िंदगीनामा है

किसी के नाम का

यह अलग बात है

हर कोई इस बात से

अनजान हो जाता है

चाहत तो सबमें है 


और चाहतें भी सभी है

अपनापन भी सब में है

पर अपनत्व कहीं नही है

वो जो ख़ामोश उदास दिल

धड़कतें है ज़ा बनकर


उनके सांसों में 

ज़िंदा आस कोई है

यह अलग बात है

इस आस को

नकार दिया जाता है


कोरी ज़िद की भट्टी में

लालच की निगेहबानी में

ईमान के पुरज़ोर प्रहार को

धूमिल किया जाता है


बस यही देखकर 

एक बशर दिल की बस्ती से

गुमनाम हुआ जाता है।


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