तलास सुकून की
तलास सुकून की
सुकून की तालाश में ,
भटक रहे सारा जहां,
कभी जंगल में तो कभी,
पहाड़ियों की गोद में।
कभी तलासते दूर समुद्र,
की गहराई में भटकते ,
पर कभी खुद में झांक,
खुद की गहराई नही देखते ।
मन के सब भ्रम निकाल दे,
खुद के मन में झांक ले ,
वहां से बढ़कर कहीं भी ,
कोई सुकून मिलता नही।