तकदीर
तकदीर
इंसान तकदीर पर क्यों रोते हो
तकदीर एक दिन बदल जाती है
इच्छा शक्ति के आगे तो
मुश्किलें भी छोटी पड़ जाती हैं
मत सोच पुरानी बातों को
हमेशा नव निर्माण करो
नई सोच व नए इरादों संग
जुट जाओं मंजिल पानें को
तू अपनी कमियां ना गिन
ना झुकना अपनी तकदीर पर
तुझें नई राह अपनानी है
तकदीर खुद बनानी है
भ्रम में मत रहो कभी तुम
नहीं देता कोई हरदम साथ
खुद पर रखोगे जो एतवार
हर किसी को दे दोगे मात
खुद पर करों भरोसा
एक दिन तकदीर भी साथ देगी
ना करोंगे खुद पर यकीन तों
तकदीर भी नजरें फेर लेगी एक दिन
जैसें निर्बल अपमानित जीवन का
कोई मोल नहीं
ऐसे ही बिना कर्म के
तकदीर का कोई मोल नहीं
इंसान को ना जाने क्या-क्या
रंग दिखाती है तकदीर
मंजिल पर पहुंचने से पहले
कई हुनर सिखाती है तकदीर
हर समय इंसान का
तकदीर साथ नहीं देती
पर मेहनत और जुनून से
बन जाती है तकदीर
इरादें मजबूत बनाओगे तो
तकदीर बदल जाएगी
वरना इल्जाम लगाते लगाते
उम्र कट जाएगी
जैसे पानी से कोई
तस्वीर नहीं बनती
वैसें ही ख्वाबों से
तकदीर नहीं बनती है
अपनी तकदीर पर घमंड न करना
ये तों एक दिन बदल जाती है
आईना वही रहता है
तस्वीर बदल जाती है!