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ca. Ratan Kumar Agarwala

Others

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ca. Ratan Kumar Agarwala

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तजुर्बे

तजुर्बे

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बीत गए उम्र के तीन पड़ाव, बुढ़ापा द्वार पर दे रहा दस्तक,

झाँकता हूँ पीछे जब, पढ़ता हूँ मैं अपने जीवन की पुस्तक।

पलटता हूँ जब जीवन के पन्ने, पाता हूँ अनुभवों की लकीरें,

जिन्दगी के यह तजुर्बे, बदल सकते हैं आज की तकदीरें।

 

उम्र के साथ बाल हुए सफ़ेद, झलक रही तजुर्बे की चमक,

मन करता है दिखाऊं बच्चों को, अनुभवों की एक झलक।

बताऊँ उन्हें कि बालों की सफेदी में तजुर्बे की चमक होती है,

दिखाऊं कि इस सफेदी के पीछे अनुभवों की दमक होती है।

 

बहुत थपेड़े खाएं हैं जीवन में, मुश्किलों से किया था सामना,

कुछ तो सीखे बच्चे बुजुर्गों से, यही है इस दिल में कामना।

बहुत कष्ट का नतीजा यह सफेदी, इसे कैसे व्यर्थ गँवा दूँ,

मेरे जीवन की पुस्तक से, कुछ अल्फाज़ बच्चों को पढ़ा दूँ।

 

राह जो तय की अब तक मैंने, नहीं रही कुछ इतनी आसान,

पलंग देखकर पाँव फैलाऊं, यही था जीवन का मूल विधान।

कम कमाई और खर्चे ज्यादा, ऐसा मैं कर सका न कभी,

सीख ले बच्चे थोड़ा सा यह गुर, सुकून से रह सकेंगे सभी।

 

थोड़ा कष्ट मिले बच्चों को, जिन्दगी की कड़वाहट भी मिले,

तभी तो समझेंगे बच्चे, कैसे होते हैं इस जिन्दगी के सिले।

सब मिला पका पकाया, जीवन की धूप का मजा न आया,

“मारने होंगे अपने हाथ पैर”, जिन्दगी ने मुझे यही सिखाया।

 

बचपन से बुढ़ापे तक, कई लोग मिले, अनेकों रिश्ते मिले,

हुए कई मीठे कड़वे अनुभव, और हुए कई शिकवे और गिले।

कारवां यूँ ही चलता रहा, चलते रहे यूँ जीवन के सिलसिले,

कभी आसान थी जिन्दगी, कभी मिले मुश्किलों के जलजले।

 

इन अनुभवों की तपिश पर, सांचे में ढलती रही ये जिन्दगी,

कुछ सुलझी सुलझी सी, कभी कुछ उलझती गई ये जिन्दगी।

बाँटना चाहूँ मैं इन लम्हों को, आज की इस युवा पीढ़ी से,

लिखवाना चाहूँ अनुभवों की वसीयत, आज की इस पीढ़ी से।

 

मैंने जी ली अपनी जिन्दगी, करूँ इन बच्चों की राह प्रशस्त,

ओढ़कर अनुभवों की चादर, हो जीवन के थपेड़ों के अभ्यस्त।

कंधे से इनके कंधा मिलाकर, करूँ तय बची हुई जिन्दगी,

पा कर अनुभवों का खजाना, संवार लें बच्चे अपनी जिन्दगी।


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