तिश्नगी
तिश्नगी
तेरी आँखें है या छलकते पैमाना
जो कोई देखें जान लेती है
देख इन
हसरतें निगाह की तिश्नगी
आज तलब उठी है मचलती
दीदार ए यार की लबालब
तेरी हया की
शौख़ीयों का कहर
दिल पर वार करे
दरिया है तू
मोहब्बत ए जाम का
मैं शराबी ना सही
पीने की आदत है
तेरी परछाई की लहर
तेरी गलियों का मुसाफ़िर मैं
दहलीज़ पर तेरी
बड़ी हसरत लिए खड़ा हूँ
ना सजदा जानूँ, ना वजू
साया जहाँ तेरा
है अपना तो खुदा वहीं
नादाँ दिल है कैसे समझाऊँ
झलक मिल जाती जो
एक तुम्हारी
जी लूँ कुछ पल सुकून से
रख दी है जान
कदमों में तेरे
नैंनो का जाम दे या
बेरुख़ी का ज़हर
कातिल भी तू,
तू ही मसीहा
मार दे या तार दे
महबूब मेरे
आगे मर्ज़ी जो तेरी।
आज या तो इन
आँखों की प्यास बुझेगी,
या उठेगी तेरे दर से
तेरे आशिक की अर्थी।