तेरे तलाश में
तेरे तलाश में


तेरे तलाश में ये जिंदगी
खुद खो गया कब पता नहीं
चलते चलते कई राहें मिली
बाकी रह गयी कई यहीं कहीं ।।
परछाई ख़ुद की कभी कभी
साथ देने से इंकार करती है
कभी धुंध में छिप जाती फिर
कभी कहती है मैं कहीँ नहीँ।।
हाथ के लकीरों को पढ़कर
माथे की शिकनों को बढ़ा दिया
आज प्यास मेरी प्यासी है भटकती
जब पानी थी मैंने तो पिया नहीं।।
नाप से उनकी तौलता खुद को
तराजू उनकी वाट भी उनका
पीछे दौड़ने का होड़ बढ़ता गया
आगे निकलने का कभी सोचा नहीं।।
खुद की पहचान खुद बनने को
गर सोचा होता कुछ और होता
आज जो भी हूँ दूसरों के लिये
खुद के लिये कभी जीया नहीँ।।
दरवाजे पे दस्तक दी थी ज़िन्दगी
फ़ुरसत थी कहाँ सुनने के लिए
निकली जो वक्त एक बार बामन
खोजो तो दुबारा वो मिलती नहीं।।