तेरा मेरा अक्स
तेरा मेरा अक्स
रिमझिम बरखा की बेला में छलका एक अक्स,
चिलकती धूप की किरणों में मिला तेरा मेरा अक्स।
गुलाबी नगरी की गुलाबी शामों में बह गये मेरे अक्स,
बादलों की घनी घोर घटाओं में छिप गए सारे सच।
जिंदगी के हर एक लम्हे में तुम्हीं संग रहे बस,
बारिशों की बूंदों में अब नहीं दिखते तेरे अक्स।
बीती कहानियों में हर किरदार हो रहा बेबस,
सावन की सुखद फुहारों से होता मन दिलकश।
आज फिर बरखा बरस के लाई तेरी यादों का अक्स,
अफसोस रहा यही ना मिल पाया कभी तेरा मेरा अक्स