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सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता "

Romance

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सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता "

Romance

तड़पें तुम बिन

तड़पें तुम बिन

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तड़पें तुम बिन

शीत-रात में कांपता तन-मन

धीमे-धीमे से बढ़ती सिहरन

(कंपकपी) पिया-बालम परदेस गया है,

उसके वियोग में घटती विरहन


(जिसका पति दूर गया हो)

सूख-सूख काया हुई तिलहन

(बीज से निकला तेल)


भोजन में जैसे अधूरा अरहन

(खाना पकाते वक़्त

मिलाया जाने वाला आटा )

सखियों की भायें ना बतियन

(संवाद वार्ता ) खुद की खुदसे होती अनबन


प्रेम-पिपासा अशांत बहुत है,

संगिनी मेरी हुई उपबरहन

(तकिया,मसद दबाना)

ह्रदय-गगरी छलक ना जाए,

प्रेम-भाव से भरी हूँ उरहन


(सुराही, जलपात्र) बिना पिया

सायों में ढ़लती,

जैसे ये चंदा सूरज गरहन

(परछाई घिरना ) सागर सी

विचलित रहती हूँ,


स्मरण-ताल में मीन ग्रहन

(मछली पकड़ना)

एक मुद्दत से ओढ़े हुए हूँ,

इंतज़ार का तेरे परहन

(लबादा जैसा पहनावा )


आँखें भी पथराने लगी हैं,

जाने कितने बीते बरहन

(12 दिनों का समूह )

"उड़ता"तुमपर अर्पण-अर्चन

बिन तेरे बीत रहा है जीवन।


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