तड़पें तुम बिन
तड़पें तुम बिन
तड़पें तुम बिन
शीत-रात में कांपता तन-मन
धीमे-धीमे से बढ़ती सिहरन
(कंपकपी) पिया-बालम परदेस गया है,
उसके वियोग में घटती विरहन
(जिसका पति दूर गया हो)
सूख-सूख काया हुई तिलहन
(बीज से निकला तेल)
भोजन में जैसे अधूरा अरहन
(खाना पकाते वक़्त
मिलाया जाने वाला आटा )
सखियों की भायें ना बतियन
(संवाद वार्ता ) खुद की खुदसे होती अनबन
प्रेम-पिपासा अशांत बहुत है,
संगिनी मेरी हुई उपबरहन
(तकिया,मसद दबाना)
ह्रदय-गगरी छलक ना जाए,
प्रेम-भाव से भरी हूँ उरहन
(सुराही, जलपात्र) बिना पिया
सायों में ढ़लती,
जैसे ये चंदा सूरज गरहन
(परछाई घिरना ) सागर सी
विचलित रहती हूँ,
स्मरण-ताल में मीन ग्रहन
(मछली पकड़ना)
एक मुद्दत से ओढ़े हुए हूँ,
इंतज़ार का तेरे परहन
(लबादा जैसा पहनावा )
आँखें भी पथराने लगी हैं,
जाने कितने बीते बरहन
(12 दिनों का समूह )
"उड़ता"तुमपर अर्पण-अर्चन
बिन तेरे बीत रहा है जीवन।