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Ritu Rose

Romance

4  

Ritu Rose

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ताजमहल

ताजमहल

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अमर धरती

 बीत गए कितने कल और आए कितने आज

 धरती पर महक उठे बन संगमरमर का ताज

 ओ जन्नत की मुमताज ओ जन्नत की मुमताज

1

आसमान की अप्सराए सारी फीकी पड़ गई

धरती पर एक आई परी जो शहंशाह की बन गई

तेरे हुस्न के किस्से सुनाए जाते हैं आज

ओ जन्नत की मुमताज ओ जन्नत की मुमताज

अमर

धरती

2

मोहब्बत बनी अजूबा तुम दोनों की याद में

जन्नत की रूहे आ के बसी अब इस ताज में

दूर-दूर तक फैल गई आंखों में बनकर याद

 ओ,जन्नत की मुमताज ओ जन्नत की मुमताज

अमर

धरती

3

तुमसे ही दिन होते थे तुमसे ही होती थी राते

तुम हंस दो तो फूल खिले रो दो तो बरसाते

कोई नहीं समझ पाया यह इतना गहरा राज

ओ जन्नत की मुमताज ओ जन्नत की मुमताज

अमर

धरती

4

नहीं सुनी ऐसी मोहब्बत बीत गई कितनी सदियां

अब तो बनकर प्यार आजा प्यासी है कितनी अखियां

क्या तेरी खामोशी को समझे आने की आवाज

ओ जन्नत की मुमताज ओ जन्नत की मुमताज।


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