ताजमहल
ताजमहल
अमर धरती
बीत गए कितने कल और आए कितने आज
धरती पर महक उठे बन संगमरमर का ताज
ओ जन्नत की मुमताज ओ जन्नत की मुमताज
1
आसमान की अप्सराए सारी फीकी पड़ गई
धरती पर एक आई परी जो शहंशाह की बन गई
तेरे हुस्न के किस्से सुनाए जाते हैं आज
ओ जन्नत की मुमताज ओ जन्नत की मुमताज
अमर
धरती
2
मोहब्बत बनी अजूबा तुम दोनों की याद में
जन्नत की रूहे आ के बसी अब इस ताज में
दूर-दूर तक फैल गई आंखों में बनकर याद
ओ,जन्नत की मुमताज ओ जन्नत की मुमताज
अमर
धरती
3
तुमसे ही दिन होते थे तुमसे ही होती थी राते
तुम हंस दो तो फूल खिले रो दो तो बरसाते
कोई नहीं समझ पाया यह इतना गहरा राज
ओ जन्नत की मुमताज ओ जन्नत की मुमताज
अमर
धरती
4
नहीं सुनी ऐसी मोहब्बत बीत गई कितनी सदियां
अब तो बनकर प्यार आजा प्यासी है कितनी अखियां
क्या तेरी खामोशी को समझे आने की आवाज
ओ जन्नत की मुमताज ओ जन्नत की मुमताज।