स्वतंत्र
स्वतंत्र
कब तक मुझे बांधे रखने की जिद है तुम्हारी
कब तक मुझे अपनी छाया से बांधकर रखोगे
मुझे स्वतंत्र करो
मेरी भी ये जिद है उड़ने दो मुझे
अपनी डोर से मत बांधो मुझे
ये डोर तोड़ कर उड़ जाऊंगी
खुद को परिभाषित कर जाऊंगी
नहीं जोर किसी का मुझ पर
तुम्हारी ये जिद तोड़ जाऊंगी
अपने से मत बांधो मुझे
कठ पुतली नहीं बनूंगी अब।