स्वरचित-"तन मन से बातें "
स्वरचित-"तन मन से बातें "
तन को मन समझाता फिरता-
चलो रात-दिन मस्ती में,
स्वस्थ, सजग, बेखौफ रहो-
दृढ़ता लाओ हस्ती में
पास रखो आत्मविश्वास-
कर्मठता की अनबुझ प्यास,
हित-हेतु धड़के स्पंदन-
बन पाओगे सबके खास
खुशी का घर भी दूर नहीं-
आसपास ही रहती है,
श्रम-रत रहकर अगर मिलोगे -
अभिनंदन वो करती है
जिंदादिल और पुलकित चेहरा-
अद्भुत तेजस, उन्नत भाल,
अनुशासित हो जीवन सारा-
कर देता है त्वरित कमाल
चंचल मन के भावों का-
आओ! अब कर लें परिहास,
थिरक रहा तन, बहको तुम भी-
जीवन में छाया उल्लास
निशदिन गतिक्रम के बल पर ही-
सूर्य करे जग में उजियारा,
धूप, शीत, बौछार सहे -
वसुधा ने अपना रूप संवारा
जोखिम-सेवा की भट्टी में-
खुद को झोंक दिया जिसने,
निखरा स्वर्ण बना वह बंधु!
सबसे अलग लगा दिखने