स्वछंद पंछी
स्वछंद पंछी
मुक्त आकाश में उड़ते स्वछंद पंछी
आह स्वाद आ गया कहकर, वाह क्या जिंदगी
कोई मुंडेर, कोई दीवार, या कोई सरहद देश की
सब अपने परों की हद में, वाह कैसी खुशी
बसेरा रख लिया,जब चाहा छोड़ दिया
न कोई मोह, न बंदिश, आहा बेशर्त आजादी
बचपने से बुढ़ापे तक फुदकता जीवन
बिना किश्त बीमा खुशियो का, हाँ बेफिक्री की मुनादी
एक डाल पर पंछी, क्या उम्र, क्या रंग, क्या जात
कोई तोड़ने की बिसात नही, यही सच्ची बराबरी
चहचहाने के लिए, किसी खुशी का इंतजार कैसा
कही भी ठुमक लो बस साथ मे गाने की हड़बड़ी
उड़ना सिखा कर आजाद कर दिए बच्चे
कोई वहीखाता हिसाब नहीं, हम्म निल विरासती
आबाद है पर आजाद कहाँ है इंसा
सबसे ज्यादा इंसानों से डरती इंसानों की बस्ती
हे प्रभु तू बांध लें खुद से, पर यहाँ से आजाद कर दे
इंसान बनकर क्या किया, बेहतर है पंछी की जिंदगी।