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Jisha Rajesh

Drama

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Jisha Rajesh

Drama

सूरज की मृत्यु

सूरज की मृत्यु

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अग्नि दीप्त किरनों से

जग का अँधेरा दूर कर

मृदु चंचल दिव्यांशु से

राग द्वेष दुख पीड़ा हर

अग्नि दीप्त किरनों से

जग का अँधेरा दूर कर

मृदु चंचल दिव्यांशु से

राग द्वेष दुख पीड़ा हर

जो सूर्य दिव्य प्रकाश लाया था

काल ने अन्त उसका दिखलाया था


प्रपंच की अनन्त दिशाओ में

जगजीवन की असंख्य सिराओं में

भरता वह असीम प्रकाश था

नियति में किन्तु उसका नाश था

जो सूर्य दिव्य प्रकाश लाया था

काल ने अन्त उसका दिखलाया था


असत्य अनीति का घनघोर अँधेरा

अत्याचारों ने था मानवता को घेरा

निस्सहाय मनुष्य को देकर सहारा

पतित पापियों को था जिसने संहारा

जो सूर्य दिव्य प्रकाश लाया था

काल ने अन्त उसका दिखलाया था


दुष्कर्मियों के तीक्ष्ण विषबाण से

छल कपट के मायावी इन्द्रजाल से

परम तेजस्वी सत्यदीप को बुझाया था

बल से नही छल से उस अजेय को हराया था

जो सूर्य दिव्य प्रकाश लाया था

काल ने अन्त उसका दिखलाया था


प्रकाश पुंज वह अनन्त भास्कर

विषबाण विद्ध विलीन हुआ दिवाकर

पुकार उठी मानव जाति हा हा कर

अन्त हुआ दिनकर का यह जानकर

जो सूर्य दिव्य प्रकाश लाया था

काल ने अन्त उसका दिखलाया था


किन्तु हे ! अन्यायी न अधिक प्रसन्न हो

कदाचित तुम्हें कथन यह अविश्वसनीय हो

काल का जाल तोड़ सूर्य फिर आएगा

जन के मन में नवल द्युति बरसाएगा

जो सूर्य दिव्य प्रकाश लाया था

काल न अन्त उसका कर पाया था।





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