सुप्रभात
सुप्रभात
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ताप के सन्ताप से
सब को बचाना
अब रब मेरे
कहते हैं
सूरज आजकल
कुछ ज्यादा ही
नाराज़ है
घर से निकलो
तो छाता
साथ में रखना जरूर
बारिशों के अलावा
यह धूप में भी
रहमतगार है
ठूंठ से हो चले हैं
जो बचे हैं
वो शज़र
शहर-गांव की बस्तियां
अब दिन भर यहां
वीरान हैं
होंठ सूखे
माथे को भिगोते
स्वेद ने
यह कहा कि
ग़र जरूरी
ना हो तो
बेशक ना निकलो
धूप है
मान दो उनको
जो रोटी कमाने
निकले तीखी
धूप में
सच कहें तो
जिंदगी से
उनकी जंग
बेमिसाल है
ताप के सन्ताप से
सब को बचाना
अब रब मेरे
कहते हैं
सूरज आजकल
कुछ ज्यादा ही
नाराज़ है।