सुमति
सुमति
देख दशा इस देश की भगवन मैं तो हूँ बड़ा हैरान।
कोई सोता भूखा-नंगा कोई खाता मीठे पकवान।।
ईर्ष्या-द्वेष इस कदर है फैला जीना कर दिया सबका दुश्वार।
प्रेम भावना लुप्त हुई एसे निंदा करते सरे बाजार।।
पराई-दौलत को पाने के खातिर पाप-पुण्य का ख्याल नहीं।
इज्जत क्या होती है वह क्या जाने खुद की कोई औकात नहीं।।
रिश्ते-नाते शर्मसार हुए जाते सम्मान बड़ों का कर नहीं पाते।
समाज की तो बात ही छोड़ो खुद का घर संभाल नहीं पाते।।
दर पर उसके जो याचक आता गाली देकर दूर भगाता।
सुबह-शाम नित घी- दीपक जलाकर माथे पर टीका है लगाता।।
क्या कहें ऐसे प्राणी को जो दोहरे चरित्र को है अपनाता।
दूर सदा इनसे बचकर रहना जबरन अपनी इज्जत करवाता।।
बहू- बेटियों को जो इज्जत नहीं करते ऐसा प्राणी पशु है कहलाता।
विवेक शून्य प्राणी वह बनता रौरव नरक में जगह है पाता।।
बिन सत्संग विवेक नहीं आता जिससे सुधरता है व्यवहार।
एक बार जो ऐसी संगत पाता समझो उसका हुआ उद्धार।।
है जरूरत अच्छे भावों की तभी होगा जग का कल्याण।
"नीरज" "सुमति" का है अभिलाषी कर बद्ध प्रार्थना है भगवान।।