सुकून की तलाश
सुकून की तलाश
सुकून की तलाश में भटक रहा जाने कब से,
ऊंची अट्टालिकाओं को कब से छोड़ दिया मैंने,
कितना खुशहाल था पर मुझे सुकून कहाँ था,
न थी खुशियाँ सिर्फ गमों से घिरा हुआ चेहरा,
फूलों को सहलाने में भी कांटों की चुभन होती,
सुख की आस मेरी आंखें रोज अश्रु से भिगोती,
किसी की तलाश में खाली है खुशियों का कोना,
उस सुकून की तलाश में आंखें मेरी तुम न रोना,
अब न कोई मौसम न कोई त्यौहार मुझे सुहाता,
आगे निकल तो पड़े हम पर राह न कोई बताता,
गुलदस्ते में रखे फूलों में खुशबू कहाँ मिलती हैं,
शोर में कोयल की मीठी चहक कहाँ बिखरती हैI