सुबह मुस्कराहट भरी होगी..
सुबह मुस्कराहट भरी होगी..
इस रात की सुबह जल्द ही
मुस्कुराहट भरी होगी !
आज फिर,उम्मीद को ओढ़े,
सुबह बालकनी में बैठ गई,
पिछले कुछ दिनों की तरह,
आज भी तो थी ... हर तरफ़
वही ख़ामोशी !
बचपन भी तो सहम गया था
इक्का- दुक्का लोग ही बाहर थे,
टहलते हुए, रुक- रुक कर
आती पक्षियों की चहचहाहट
प्रदूषण रहित, साफ़ हवा
मगर मीठी- सी हलचल के बिना
तभी देखा, एक गौरेया, दूर बैठी,
मेरी तरफ़ ही देख रही थी,
जैसे पूछ रही हो, हर तरफ़ छाई
इस ख़ामोशी का कारण !
सामने बन रही इमारतें
क्यों खामोश हैं ...?
मज़दूरों की वह चहल- पहल,
कहाँ हैं ....?
सुबह से शाम तक आती,
प्रगति की वे आवाज़ें !
जिनमें पक्षियों की ध्वनि भी
गुम हो जाती थी,
शहर के इस वातावरण में रहने की
उन्हें भी तो आदत हो गई थी।
आज, इस ख़ामोशी से वे भी तो बेचैन हैं !
एकाएक, वह मेरे बहुत करीब आ गई,
चहचहाई....!
जैसे कह रही थी...चिंता मत करो,
फिर से, वही चहल- पहल व
खिलखिलाहट होगी ...!
मैं भी मुस्कुराई,
हाँ ...जब तक प्रकृति,
जीव और मनुष्य एक हैं...
मानवता मिट नहीं सकती।
इस रात की सुबह जल्द ही
मुस्कुराहट भरी होगी ।