स्त्री-निर्णय
स्त्री-निर्णय
पुरुष प्रधान समाज में, महिला लाचार
पुरुषों को निर्णय लेने का हर अधिकार
शादी वास्ते लड़की देखने जाये रिश्तेदार
वहां भी उसे बहु चुनने का न अधिकार
सास-बहू के झगड़ों से टूटते हैं परिवार
खास की महिला भी ले निर्णय एकबार
फिर खत्म होंगे सास-बहू झगड़े हजार
जहां पर महिलाओं में न होती, टकरार
वहां बसता है, स्वर्ग जैसा सुखी संसार
यह तब मुमकिन होगा यहां होशियार
महिलाओं को मिले निर्णय अधिकार
एक स्त्री को दूसरी स्त्री सही समझती,
जो शख्स होता है, दुनिया में समझदार
बहु चुनने का, स्त्री को देता, अधिकार
उस घर मे न होते झगड़े एक भी बार
जहां स्त्री को मिलता, बराबर अधिकार
वहां होता, शांति सुख-संपति का वास
जहां स्त्री को समझते शक्ति पारावार।