स्त्री का सम्मान करो
स्त्री का सम्मान करो
इस जिंदगी में भला,
किस तरह कोई सलामत लौटे,
जब अपने भेदभाव करते और लगाते
अपने ही चहरों पर कई मुखोटे पर मुखोटे,
तानों की बौछार सिर्फ स्त्रियों को क्यों मिलती है,
इसलिए कई घरों में नन्हीं- नन्हीं कलियाँ नहीं खिलती है,
आज अपने ही घर में,
लड़की पराई सी जान पड़ती है,
और अपने ही हक के लिए अपने आप से,
कभी दोगले इस समाज से बस लड़ती रहती है,
लगता तानों की बौछार से वो सजती और संवरती है,
और जब अपने पर आ जाऐ जब वो किसी से नहीं डरती है,
आज स्त्री- पुरुष के साथ,
कदम से कदम मिलाकर चल रही है,
और तो और सिर्फ घर ही नहीं पूरा देश,
अपने ही बलबूते पर अच्छी तरहा चला रही है,
धरती से दूर उस चांद तक का सफर कर दिखाया है,
आज हर दिशाओं में भी उसने अपना सिक्का चमकाया है,
स्त्री और पुरुष में भेद कर,
यहाँ नकारात्मकता कभी न फैलाओ,
सकारात्मकता का दीप जलाकर अंधकार को,
अपने दिल,दिमाग, मन और इस समाज से मिटाओ,
संभल जाओ जो भ्रम फैलाकर करते हैं इनका परिहास,
देखो उठाकर स्त्रियों के सम्मान में भरा पड़ा हुआ इतिहास,
सुना हमने स्त्री-पुरुष में,
आज भी करते हैं भेद कुछ लोग,
जो करते भेद वो स्त्री पुरुष ही कहलाते हैं,
दूसरों की कमियों में अपनी कमियाँ कहाँ गिनवाते हैं,
जब इन्हीं बातों से चोट किसी के दिल पर लग जाते हैं
तब उनकी इन बातों से दिल के सभी घाव हरे हो जाते हैं।