स्त्री और पुरुष
स्त्री और पुरुष
क्यों स्त्री को रोना है,
क्यो पुरूष को ढोना है,
चंद आँसू पुरुष पोंछ ले,
चंद भार स्त्री उठा ले।
जो कमी ईश्वर ने
पुरुष को दी,
उसे स्त्री पूरा करे,
जो कमी स्त्री को दी,
उसे पुरुष पूरा करें।
स्त्री और पुरुष,
सृष्टि के संचालक।
क्यो न मिल के
संचालन करें?
न एक ज्यादा,
न एक कम,
एकदम बराबर।
न पुरुष को
अपने शक्ति पे अभिमान हो,
न स्त्री को अपनी यूक्ति का गुमान हो।
न पुरुष रक्षा के बदले भक्षण करें,
न स्त्री ममता के बदले शोषण करें।
न पुरुष मालिक हो,
न स्त्री मालकिन हो।
स्त्री और पुरुष
अपने कार्यों का,
खुशी-2 निर्वहण करें।
और ये कार्य,
दोनों ख़ुद ही
निर्धारण करें।
स्त्री और पुरुष
सृष्टि के संचालक।