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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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सरसी छंद - उपहार

सरसी छंद - उपहार

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मुझको भी ऐसा मिल जाए, ईश्वर का उपहार।

चमक उठेगा मातु कृपा से,मम जीवन आधार।।


नहीं अधिक की चाहत मेरी,और न कोई लोभ।

जीवन चलता जाता मेरा, इसमें कैसा क्षोभ।

मेरा जो है मिलना मुझको, वही मेरा उपहार।

तनिक नहीं जिस पर हक मेरा, क्यों मानूँ अधिकार।।


हर प्राणी खुशहाल सदा हो, ऐसा हो उपहार।

किंचित दुख भी कभी किसी के, पहुँच न पाये द्वार।

संसारी जन सदा सुखी हों, आपस में हो प्यार।

फूलों की बगिया जस दुनिया, करना प्रभु साकार।।


ऊंच नीच का भेद न कोई, घन घमंड हो चूर।

जात पात का द्वंद्व धरा से, ईर्ष्या नफरत दूर।

ऐसी दुनिया बने हमारी, सबका श्रेष्ठ विचार।

यही सभी जन की इच्छा हो, ऐसा मम संसार।।



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