सरकारी उम्र
सरकारी उम्र


मैट्रिक से स्नातक तक
वो मोटी-मोटी किताबें
जिसे समझने के लिए
ट्यूशन पढ़ा करते थे
और अंग्रेजी शब्दों का अर्थ
ऑक्सफोर्ड की डिक्शनरी में
बारिकी से खोजा करते थे
सरकारी उम्र पार करते ही
सब बेकार हो गया ।
साइन थीटा काॅस थीटा
टैन थीटा और अल्फा बीटा
सब के सब हो गए फीका
कहाँ काम आया दैनिक जीवन में
न्यूटन और आर्किमिडीज़ की सिद्धांत
क्वांटम और मैंडल की थ्योरी
थोड़ी बहुत समझ में आया भी तो
कैमिस्ट्री का लैब
जहां हमें सिखाया गया
इथाइल और मिथाइल
अल्कोहल में फर्क
कौन जहर है और कौन पेय
।
काश !
मैं भी सरकारी मुलाजिम होता
एक तारीख को दरमाहा आता
मनपसंद पकवाने खाता
छुट्टियों में पिकनिक मनाता
देखे थे जो जो सपने
सब के सब दिन के तारे हो गए
और इष्ट परिजन के बीच
हम बेबस लाचार और बेचारे हो गए ।
पर मैं क्या ही कर सकता हूं
गिरता हूं सम्भलता हूं
हंसता हूं रोता हूं
घूंट घूंट कर जीता हूं
और घूंट घूंट कर मरता हूं
अश्रु कलम से
विधना ने है लिख दिया
जो दर्द भरी कहानी
धरा रंगमंच में उसे
किसी तरह निभाता हूं।